Tuesday, March 21, 2017

हरमू और स्वर्णरेखा का भी अंतिम संस्कार कर दीजिये



गंगा और यमुना को अब भारतीय नागरिक के समान सभी अधिकार प्राप्त हो गए है. उत्तराखंड कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला एक ओर समाज के नदियों के महत्व को दर्शाता है तो दूसरी ओर व्यवस्था को चिढ़ाता भी है, की जीवन के आधार और सभ्यता के केंद्र बिंदु को हमने किस कदर हाशिये पर रखा हुआ था..

गंगा और यमुना बड़ी नदियाँ हैं, भारत के माथे और गौरवशाली इतिहास के कारण राजनैतिक लाभ-हानि का भी मुख्य केंद्र बिंदु रहा है. लेकिन उन छोटी नदियों का क्या जो ना ही राजनेताओं के कार्यसूची में कोई स्थान पाती है और ना ही न्यायपालिका की नज़रों में “सुओ-मोटो” का विषय.

झारखण्ड में रघुबर सरकार प्रधानमंत्री मोदी की नक़ल करने में सबसे आगे है. हर वो केन्द्रीय योजनाओं का क्षेत्रीय स्वरुप यहाँ देखने को मिल जाएगा. गंगा की तर्ज़ पर स्वर्णरेखा के जीर्णोद्धार की खूब सरकारी योजनायें बनी, डीपीआर के नाम पर करोड़ों की फीस चुका दी गयी लेकिन राजधानी की दो प्रमुख नदियाँ आज भी नाले के अलावे कुछ भी नहीं. कभी साबरमती तो कभी टेम्स का सपना बेचने वाले हुक्ममरान आज इस नाले को ही बचा ले तो बहुत होगा. गंगा और यमुना को प्राप्त संवैधानिक अधिकार के बाद मानों इन नदियों का तो अंतिम संस्कार ही कर दिया जाए तो बेहतर होगा, कम से कम रोज-रोज के इस घुटन से तो अच्छा होगा.

मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर करोड़ों की “चाईनीज़ लडियां” लगाने वाली सरकार अगर 1% भी इस मद में खर्च कर पाती तो आज इन नदियों की दशा कुछ और होती. पूरी तरह नाले में तब्दील हो चुकी हरमू स्वर्णरेखा की भी तय कर रही है. मुखिया दर्शक बने बैठे है, क्योंकि ना ही इसके पुनर्जीवन के प्रयासों से भविष्य में कोई वोट मिलने वाला है और ना ही गंगा-यमुना की तरह ये अब कोई शिकायत कर सकती है.