Wednesday, April 19, 2017

विकास की गाथा लिखता तिल्दा

छत्तीसगढ़ की राजधानी से तक़रीबन 50 किलोमीटर दूर तिल्दा जनपद पंचायत. अमूमन गांवों की नकारात्मक अवधारणा से विपरीत.. साफ़-सुथरी सड़कें, हर घर के बाहर नालियों के पानी के लिए एक सोख्ता, और सबसे बड़ी बात पंचायत का हरेक गाँव “ खुले से शौच मुक्त” (ODF).

लेकिन पुरे पंचायत को ODF करना इतना आसान नहीं था, लोगों के बीच सरकार के विकास कार्यों का क्रियान्वयन करना, वो भी उस आदत को छुड़ाना जिसे वो सदियों से ढोते आ रहे थे. सरकार की योजना के तहत शौचालय निर्माण के लिए राशी भी दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन महज़ पैसे के लिए शौचालय का निर्माण कर लक्ष्य प्राप्ति को वहां की ग्राम सभा और पंचायत समिति ने नकार दिया. गाँव की सरपंच से लेकर आशा दीदी और गाँवों की महिलाओं ने अपने गाँव को ODF (Open Defecation Free) बनाने के लिए काम करना शुरू किया,

गाँव की महिलाओं ने सुबह 3 बजे से ही पहरा देना शुरू  किया, कई बार लोगों से झड़प हुई, लोगों ने गालियाँ भी दी, मारपीट भी हुई. लेकिन गाँव की महिलाओं ने हार नहीं माना. धरना प्रदर्शन का भी सहारा लिया, गाँव के जिस परिवार ने शौचालय नहीं बनाया, उसके घर के बाहर सुबह पौ फटने से पहले ही धरने में जाकर बैठ गयी. इनकी मेहनत रंग लायी और मात्र 2 महीनों में ही पुरे जनपद पंचायत को खुले से शौच मुक्त बना दिया.

स्वच्छता से समृद्धि की किरण फूटी आज यहाँ कोई ऐसा घर नहीं है,  जिनके बच्चे स्कुल नहीं जाते हो, गाँव में कॉलेज भी है, वो भी बिलकुल सुचारू रूप से.
पंचायत की गाँवों में शराब का चलन भी नहीं है, अगर कोई सेवन करता भी है, तो इतनी निजता से की पड़ोसी को भी इसकी खबर नहीं.  महिलायें स्वयं सहायता समूह के माध्यम से पैसे भी जमा करती है और जरुरत पड़ने पर बहुत ही कम ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध कराती है.

जिला पंचायत के मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी (CEO) श्री निलेश क्षीरसागर भी एक कार्यकर्त्ता की तरह दिन रात डटे रहते है, लोगों और सरकार के बीच के संवाद को उन्होंने इतनी सजगता और सरलता से प्रस्तुत किया है, जो अन्य अधिकारीयों के लिए एक भी एक आदर्श है. पंचायत में सस्ते शौचालय के लिए पिट निर्माण विधि को अपनाया गया, जिससे मानव मॉल आसानी से “ सोना खाद” के रूप में तैयार हो जाता है.

आज #तिल्दा विकास की एक नयी गाथा लिख रहा है. ग्राम सरपंच श्रीमती रेखा प्रह्लाद, और कल्याणी जी के साथ साथ पूरा का पूरा गाँव #स्वच्छ_भारत_अभियान को आगे बढ़ा रहा है.  
#झारखण्ड को इस पडोसी राज्य से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है. आज यहाँ के शहरों में भी खुले में शौच एक समस्या बनी हुई है. केवल बजट में राशियों का प्रावधान और योजना बना देने से ही योजना धरातल पर नहीं उतरता, उसके लिए एक कड़ी मेहनत और निष्ठा की जरुरत पड़ती है, जिसे तिल्दा के लोगों ने कर दिखाया है..

आइये हम भी उनकी प्रेरणा से अपने शहर और राज्य को स्वच्छ बनाने की दिशा में काम करें 

Tuesday, March 21, 2017

हरमू और स्वर्णरेखा का भी अंतिम संस्कार कर दीजिये



गंगा और यमुना को अब भारतीय नागरिक के समान सभी अधिकार प्राप्त हो गए है. उत्तराखंड कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला एक ओर समाज के नदियों के महत्व को दर्शाता है तो दूसरी ओर व्यवस्था को चिढ़ाता भी है, की जीवन के आधार और सभ्यता के केंद्र बिंदु को हमने किस कदर हाशिये पर रखा हुआ था..

गंगा और यमुना बड़ी नदियाँ हैं, भारत के माथे और गौरवशाली इतिहास के कारण राजनैतिक लाभ-हानि का भी मुख्य केंद्र बिंदु रहा है. लेकिन उन छोटी नदियों का क्या जो ना ही राजनेताओं के कार्यसूची में कोई स्थान पाती है और ना ही न्यायपालिका की नज़रों में “सुओ-मोटो” का विषय.

झारखण्ड में रघुबर सरकार प्रधानमंत्री मोदी की नक़ल करने में सबसे आगे है. हर वो केन्द्रीय योजनाओं का क्षेत्रीय स्वरुप यहाँ देखने को मिल जाएगा. गंगा की तर्ज़ पर स्वर्णरेखा के जीर्णोद्धार की खूब सरकारी योजनायें बनी, डीपीआर के नाम पर करोड़ों की फीस चुका दी गयी लेकिन राजधानी की दो प्रमुख नदियाँ आज भी नाले के अलावे कुछ भी नहीं. कभी साबरमती तो कभी टेम्स का सपना बेचने वाले हुक्ममरान आज इस नाले को ही बचा ले तो बहुत होगा. गंगा और यमुना को प्राप्त संवैधानिक अधिकार के बाद मानों इन नदियों का तो अंतिम संस्कार ही कर दिया जाए तो बेहतर होगा, कम से कम रोज-रोज के इस घुटन से तो अच्छा होगा.

मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर करोड़ों की “चाईनीज़ लडियां” लगाने वाली सरकार अगर 1% भी इस मद में खर्च कर पाती तो आज इन नदियों की दशा कुछ और होती. पूरी तरह नाले में तब्दील हो चुकी हरमू स्वर्णरेखा की भी तय कर रही है. मुखिया दर्शक बने बैठे है, क्योंकि ना ही इसके पुनर्जीवन के प्रयासों से भविष्य में कोई वोट मिलने वाला है और ना ही गंगा-यमुना की तरह ये अब कोई शिकायत कर सकती है.