Saturday, March 15, 2014

चुनावी मौसम में मीडिया की भूमिका



देश के चुनावी मौसम में मीडिया की भूमिका पर जोरदार बहस हो रही है। दिल्ली के 49 दिनों के पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा मीडिया के लोगों को जेल भेजने व पक्षपात करने के आरोपों को टीवी चैनलों ने प्रमुखता से प्रसारित किया।  टीम केजरीवाल की पहचान दिल्ली से पूरे देश तक फैलाने वाली, मीडिया की भूमिका चुनावी समर में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके पूर्व भी मीडिया पर ऐसे आरोप लगते रहे है और कुछ ऐसे संबंध भी सामने आते रहे है जो किसी न किसी राजनीतिक दलों को फायदा पहुँचाते हो। टीम केजरीवाल में भी आषुतोष, मनीष सिसौदिया, शाजिया इल्मी और आषीष खेतान जैसे वरिष्ठ पत्रकार है, अब ये तो स्पष्ट है कि इन पत्रकारों का आप के प्रति प्रेम एकाएक नहीं जागा होगा। अपने पत्रकारिता जीवन में इन्होंने कितनी निष्पक्षता बरती होगी यह तो इनके वर्तमान रवैये से स्पष्ट हैं।


देश को एक स्वच्छ राजनीति देने के वायदे अब गर्त में चली गई। आम आदमी पार्टी, लोगों की भावनाएं और सपनों को आधार बना कर राजनीतिक सुख भोगते हुए खुद भी उसी राजनीति का हिस्सा बन गयी, जिसके विरोध में आप का जन्म हुआ था। व्यवस्था परिवर्तन के नारे अब सत्ता परिवर्तन में तब्दील हो चुके है।
लोकतंत्र का महापर्व देश के लिए हमेशा महत्वपूर्ण होता है। जनता की अपेक्षाएं हमेशा उनके जीवनस्तर में सुधार की होती है। इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि कौन सरकार बनाएगा, महत्वपूर्ण यह है कि जो भी सरकार में आए वो सरकार कैसे चलाएगा? अब अगर मीडिया के सर्वेक्षणों में कांग्रेस की पराजय दिख रही है और भाजपा कि सरकार बनती दिख रही है, तो इसका कतई अर्थ नहीं कि मीडिया भाजपा के समर्थन में आ गयी है। यह एक प्रत्याशित घटना मात्र है। जो सरकार के कार्यकाल और कार्यशैली के प्रति लोगों की प्रतिपुष्टि को दर्शाता है।
मीडिया की कार्यशैली पर सवाल उठाकर मीडिया का ध्यान खींचने वाले टीम केजरीवाल अगर वहीं पुराने मुद्दों को आधार बनाकर लोगों के बीच जाते तो मीडिया समेत सामान्य लोगों का भी दिल जीतने में सफल हो पाते। अनर्गल प्रलाप और आरोपों के स्थान पर देश में मुद्दों के आधार पर राजनीति हो तो सच में आम आदमी और देश का कुछ भला होगा, वरना वहीं ढाक के तीन पात।