Sunday, April 19, 2015

दूर देश में बजता डंका....



दूर देश में बजता डंका....

तिरंगा बन गया अब चौरंगा...

लोग समंदर पार भारत माँ के जयकारे लगाये..

देश में गद्दार पाकिस्तानी झंडा लहराये....

कुर्सी बचाने की चाहत में...
मत बेचो स्वाभिमान को
अमरीका, कनेडा को छोडो
देखो अपने किसान को…
इसी देश में कफ़न
को भी तरसता हमारा "जवान" है।
"कृषक देवो भवः " की सिद्धांतो में
भूखा पेट किसान है…
लाज बचाने को लड़ती बहने
कैसे " भारत महान है " ??

Friday, April 3, 2015

ये है इंडिया का त्यौहार?

डेढ़ महीनों के लंबे क्रिकेट श्रृंखला में भारत के पराजय के बाद लोगों में प्रतिक्रियाएं देखने को मिली। कईयों ने अपने टीवी तोड़े तो कईयों ने अपने पसंदीदा खिलाडि़यों के पुतले भी जलाए। लोगों के आक्रोश से तो लगा कि देश में अब क्रिकेट के प्रति पागलपन में थोड़ी कमी आएगी।
लेकिन भारतीय टीम की स्वदेश वापसी के साथ ही टेलीविजन पर ‘‘आईपीएल’’ का विज्ञापन आना शुरू हो गया। विज्ञापन में इस श्रृंखला को ‘‘ये है इंडिया का त्यौहार’’ बताया जा रहा है। जिसमें खिचड़ीपरोस खिलाडि़यों के साथ कई टीम इस श्रृंखला में भाग लेंगे। जिसका न तो कोई क्षेत्रीय और न ही कोई राष्ट्रीय आधार होगा। बस केंद्र में केवल पैसा होगा, जहां खिलाड़ी पहले भेड़ बकरीृृृृृृृृृृृ के रूप मंे किसी खरीददार ( टीम के मालिक ) के द्वारा खरीदे गए है। जिनका इन ‘‘मालिकों’’ के द्वारा व्यवसायिक इस्तेमाल किया जाएगा।
जो खिलाड़ी जितने अधिक में बिके है, उनका सीना उतना ही चैड़ा होता गया। पिछले साल तक जो किसी और के गुलामी किया करते थे, वो आज किसी नए स्वामी की स्वामीभक्ति के लिए तैयार है। अब बताईए ये कैसा इंडिया का त्यौहार है, जहां पहले खिलाडि़यों की खरीद-फरोख्त होती है, फिर व्यवसायिक हितों को ध्यान में रखकर तय होता है कि विजेता कौन होगा? क्या ऐसे खेल में कहीं से भी बंधुत्व की भावना नज़र आती है, जहां पहले से प्राईस टैग लगे लोग केवल इसी उद्येश्य से खेलते है, कि अगले साल हमारा भाव और कैसे बढ़े।
और अब ऐसी श्रृंखला का आयोजन करने वाले जबरन इसे इंडिया का त्यौहार घोषित करने में तुले है। क्रिकेट एक अच्छा खेल है इससे इनकार नहीं किया जा सकता, निश्चयतः भारतीय खिलाडि़यों ने इस खेल के माध्यम से विश्व में भारत का मान बढ़ाया है। लेकिन क्रिकेट के बहाने व्यापार करने वाले आयोजक किसी भी रूप में न तो लोगों का मनोरंजन कर रहे है और न ही किसी प्रकार की देशभक्ति। वे बस किसी प्रकार से लोगों को बेवकूफ बनाकर अपने लिए एक बाजार तलाश रहे है।
क्रिकेट और लोगों की भावनाओं का बाजारीकरण किसी भी रूप से इंडिया का त्यौहार नहीं है, हम होली, दीवाली और ईद मनाते है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत और सामाजिक बंधुता का संदेश छिपा होता है। भेड़ बकरों की खरीद-फरोख्त और उसकी लड़ाई किसी भी तरह भारत का त्यौहार नहीं हो सकता। अगर कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी अपने फायदे के लिए भारत को इंडिया बनाने में तुला है, तो उसका बहिष्कार किया जाना चाहिए।