Thursday, April 4, 2013

आतंकवाद की रंगीन परिभाषा और लाशों का मूल्य निर्धारण

हैदराबाद में हुए बम धमाकों ने एक बार फिर से आतंकियों के मनोबल को बढ़ा दिया है। धमाकों की गूंज एक आम आदमी के दर्द से होते हुए फिर एक दफे राजनीतिक गलियारों में हुक्ममरानों के लिए 'लाषों के मूल्य निर्धारण की रस्म अदायगी बन कर रह गयी।
वर्षों तक आतंकियों के मेहमाननवाजी के बाद भी सरकार आतंकवाद की 'रंग-बिरंगी परिभाषा तक के ही निष्कर्ष पर पहुंच सकी, देष के दुष्मन को परिभाषित करने की लंबी प्रकि्रया के बीच कीड़े मकौड़े की भांति दम तोड़ता आम आदमी और हर बार की तरह बिना किसी निष्कर्ष के होने वाले 'जांच के बीच सरकार की डिमेंषिया (भूलने की बिमारी) देष के दुष्मनों के मनोबल को बढ़ाने के लिए काफी है। आतंकवाद से लड़ने का 'सैद्धांतिक संकल्प और ऐसी घटनाओं के बाद मुवावजे की रस्म अदायगी से हमारी पहचान एक  ऐसे 'साफट नेषन के रूप में होती जा रही है जो इतना सहनषील है जो कभी पलट के वार नही करता।
धमाकों की लंबी श्रृंखला के बाद हर बार टीवी स्टूडियों में पुरानी गलतियों की समीक्षा और लंबी बहस के अलावे कुछ भी नही होता, मंत्री जी राज्य सरकार को  दोषी ठहराते है तो राज्य केंद्र को, इस रस्साकषी में बजट में हर साल सुरक्षा के नाम पर फंड बढ़ता जाता है फिर भी हम चौक चौराहों में एक सीसीटीवी कैमरे तक को भी दुरूस्त नही कर पाते। देष में हार्इ अलर्ट की घोषणा घटना घट जाने के बाद होती है, लेकिन खुफिया विभाग की चेतावनी फाइलों में ही दब कर रह जाती है।
सरकार किसी की हो कुर्सी पर बैठे 'खास और फुटपाथ और लोकल ट्रेन में धक्के खाती 'आम जनता के बीच एक बहुत बड़ी खार्इ है, जिसमें बम ब्लास्ट और ट्रेन एक्सीडेंट से मरने वालों की कीमत चंद रूपयों की है। सरकार कीमत अदा करती है और भविष्य में ऐसे हादसों के लिए फिर से फंड का इंतजाम कर लेती है। सवा सौ करोड़ की जनता के देष में 10-20 लोगों की जान की कीमत भला हो भी क्या  सकती है?
देष में लोगों के कीमत निर्धारण के पहले महत्व का निर्धारण करना होगा, एक आम और खास दोनों देष में समान महत्व के है और उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है। सुरक्षा के हवार्इ किले बनाने से अच्छा होगा कि हम अपनी आधारभूत संरचना को ठीक करें। और आतंकवाद की रंग-बिरंगी परिभाषा गढ़ने के बजाय सीधे षब्दों में यह सुनिषिचत करे कि देष के प्रति बुरा सोचना ही आतंकवाद है, चाहे ऐसा सोचनेवाला किसी भी रंग या किसी भी मजहब का हो।
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2 comments:

  1. hindi me ek achha lekh..manviya samvednao ko dikhane ki koshish hai, aise hindi article bahut kam padhne ko milte hai,
    Thanks Sudhir.

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