Wednesday, May 21, 2014

मुझे गंगा ने बुलाया है

अपनी घाटों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध वाराणसी भारत के 16 वें आमचुनाव में राजनीति का केंद्र बिंदु रहा। चुनावी मुकाबलों के अलावे यहां से विजयी उम्मीदवार सह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘‘मुझे गंगा ने बुलाया है’’ जैसे विज्ञापनों के संवाद से मतदाताओं को आकृष्ट करने में सफलता पायी। चुनाव खत्म हो गया और चुनावी समर का केंद्र बिन्दु रहा यह पौराणिक शहर भी अखबार के पहले पन्ने से खिसकते हुए भीतर के पृष्ठों में पुनः अपनी जगह तलाषने लगा।
चुनावों के दौरान भले ही संबों ने गंगा में डुबकी लगायी, गंगा की आरती की और गंगा के मैलेपन को दूर करने की कसमें खायी। लेकिन क्या इस मातृवत गंगा की दुर्दशा के प्रति कोई राजनीतिक संभावना नजर आती है? चुनाव में अपने ही प्रदेश में में मुंह की खायी, समाजवादी पार्टी के नेता व राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नरेंद्र मोदी के गंगा की सफाई के वादों पर प्रश्न चिंह लगाते हुए कहा कि देखते है कि आने वाले पांच सालों में वे गंगा कि किस कदर सफाई कर पाते है। उक्त बयानों का अगर राजनीतिक अर्थ न भी निकाला जाए, तो इसमें एक राज्य सरकार के द्वारा भविष्य में असहयोग की संभावना झलकती है।
गंगा के मैलपन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपनी चुनावी नैया पार करने वाले ये राजनेताओं से क्या एक स्वच्छ व शुद्ध गंगा की उम्मीद की जा सकती है? क्या हम नवनिर्वाचित सरकार से ये आशा कर सकते है, कि वे औद्योगिक कचरों को डंप करने की परंपरागत नदियों के स्थान पर कोई वैकल्पिक व स्थायी हल निकालेगी? भाजपा की घोषणापत्र में नदियों को जोड़ने की बातें हमेशा से ही कही जाती रही है। कुछेक भाजपा शासित राज्यों में इस दिशा में प्रयास भी किए है। लेकिन सहायक नदियों के इत्तर गंगा एक नदी मात्र नही है। यह करोड़ो किसानों की जीवनरेखा है, जो उत्तर से पूर्वी भारत तक के लोगों को एक सूत्र में पिरो कर रखती है। इसके निर्मलता को पुर्नस्थापित करने के लिए किसी और ‘‘प्लान’’ की नहीं मजबूत संकल्प व सबके सहयोग की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढि़यों को नमन कर माँ के रूप में देश की सेवा का संकल्प दुहराया है। वाराणसी से प्रधानमंत्री का होना गंगा के निर्मलीकरण की संभावना को निश्चय ही बल प्रदान करता है। लेकिन ये तबतक संभव नहीं होगा, जबतक कि विभिन्न राज्यों से होकर गुजरने वाली गंगा को राजनीतिक नफे-नुकसान से दूर रखकर एक सहयोग की भावना से काम न किया जाए।

No comments:

Post a Comment